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वनमाली: हिंदी साहित्य के अमूल्य रत्न

जगन्नाथ प्रसाद चौबे 'वनमाली'

चालीस से साठ के दशक के बीच 'वनमाली' हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण स्तम्भ

जगन्नाथ प्रसाद चौबे, जिन्हें उनके लेखक नाम 'वनमाली' से जाना जाता है, हिंदी साहित्य के अद्वितीय योगदानकार रहे हैं। उनका जन्म 1 अगस्त 1912 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था, और 30 अप्रैल 1976 को भोपाल, मध्य प्रदेश में उनकी अंतिम सांस लियी।

उनका लेखन, 1940 और 1960 के दशकों के बीच, हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में अद्भुत प्रकार से प्रकाशित हुआ और आज भी हमारे साहित्य के अनमोल रत्न के रूप में चमक रहा है।

साहित्यिक योगदान:

आचार्य वनमाली ने अपनी लेखनी की शुरुआत 1934 में की थी, जब उनकी पहली कहानी "जिल्दसाज" कोलकाता से निकलने वाले 'विश्वमित्र' मासिक में प्रकाशित हुई। उसके बाद लगभग पच्चीस वर्षों तक वे प्रतिष्ठित साहित्यक पत्र पत्रिकाओं जैसे 'सरस्वती,' 'कहानी,' 'विश्वमित्र,' 'विशाल भारत,' 'लोकमित्र,' 'भारती,' 'माया,' 'माधुरी,' आदि में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे। उनकी कहानियों में भावनात्मक अनुभव की तीव्रता, कथाओं में नाटकीय प्रभाव, सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक समझ, और विश्लेषण की क्षमता के कारण, उनकी कहानियों को व्यापक पाठक वर्ग और आलोचकों, दोनों से ही सराहना प्राप्त हुई।

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:

आचार्य वनमाली ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मध्य प्रदेश के अनेक विद्यालयों और महाविद्यालयों में अध्यापन किया और छात्रों को उनकी महत्वपूर्ण शिक्षा दी। उनके व्यंग्य निबंध और निबंध लेखन कौशल भी उन्हें चर्चित बनाते रहे। उनकी कहानियों को आकाशवाणी इंदौर से नियमित रूप से प्रसारित किया गया।

सामाजिक योगदान:

वनमाली ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे मध्य प्रदेश के अग्रगण्य शिक्षाविदों में थे, और शिक्षक, प्रधानाध्यापक, और उपसंचालक के रूप में कई स्थानों पर कार्य किया। उन्होंने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् की समिति के सदस्य के रूप में भी शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई। 1962 में डॉ. राधाकृष्णन द्वारा उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वनमाली का योगदान हिंदी साहित्य के साथ-साथ शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण था, और उनकी कथाएँ आज भी हमें उनके महत्वपूर्ण योगदान का स्मरण कराती हैं।

सम्मान:

उन्होंने अपने श्रेष्ठ कहानियों के संकलन में आचार्य नंददुलारे वाजपेयी द्वारा प्रस्तुत कहानी 'आदमी और कुत्ता' को स्थान दिया था। 1962 में, डॉ. राधाकृष्णन के हाथों उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से विभूषित किया गया।

उपसंग्रह :

वनमाली के लेखन का अध्ययन करने के लिए उनकी कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, जो उनके महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान को दर्शाती हैं। आचार्य जगन्नाथ प्रसाद चौबे 'वनमाली' ने अपने जीवन के दौरान हिंदी साहित्य को नए ऊँचाइयों तक पहुँचाया और अद्वितीय साहित्यकार के रूप में अपनी छाप छोडी।

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वनमाली स्मृति कथा सम्मान में अम्मा श्रीमती चौबे के साथ

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‘उद्भावना‘ एवं ‘सूत्रधार‘ द्वारा आयोजित वनमाली स्मृति कथा सम्मान में

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‘‘आज की कहानी‘ में दूधनाथ सिंह, राजेंद्र यादव, मार्कंडेय, शशांक एवं संतोष चौबे.

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गोष्ठी में शामिल रचनाकार रामप्रकाश, राजेश जोशी, नरेंद्र जैन, विष्णु नागर, धु्रव शुक्ल, नवल जायसवाल, शंशाक एवं नमिता सिंह

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वनमाली स्मृति कथा सम्मान में राजेंद्र यादव के साथ

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संतोष चौबे और विनीता

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‘आज की कहानी‘ में रचनाकार गुमास्ता, नवल जायसवाल, रामप्रकाश, लीलाघर मंडलोई, विनोद मिश्र, नवीन सागर, शशांक, राजेंद्र यादव, वेणु गोपाल, संतोष चौबे, राजेश जोशी, दूधनाथ सिंह एवं मार्कंडेय