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जलतरंग, उपन्यास (2016)

लेखक : संतोष चौबे

संभवतः यह हिन्दी का पहला ऐसा उपन्यास है जिसके आख्यान के केन्द्र में भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी परंपरा अपने अनेक वादी, संवादी और विवादी स्वरों के साथ मौजूद है। भारतीय इतिहास के साथ संगीत में आये परिवर्तनों और संगीत के नवोन्मेष के बीच आन्तरिक रिश्तों की पड़ताल भी संतोष करते चलते हैं ...

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नौ बिन्दुओं का खेल

लेखक : संतोष चौबे

इस संग्रह की कहानियों में ‘इपिक सेंस’ है। अपने समय व समाज को, उसवेफ बदलते यथार्थ को समूची गतिशीलता में पकड़ने, समझने व कहानी वेफ रूप में प्रस्तुत करने की कला वेफ साथ-साथ कहानी को विश्वसनीय बनाये रखना कथाकार की सबसे बड़ी शक्ति है।

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उपन्यास की नई परंपरा, आलोचना (2011)

लेखक : संतोष चौबे

कला को विचारधारा में तब्दील नहीं किया जा सकता, बस उसका विचारधारा से एक निश्चित संबंध होता है। विचारधारा असल में ऐसे काल्पनिक तरीकों का चयन करती है जिनके माध्यम से आदमी वास्तविक विश्व को अनुभव करता है...

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आख्यान का आंतरिक संकट, आलोचना (2011)

लेखक : संतोष चौबे

जिन दो चीजों ने आज के यथार्थ की पहचान को मुश्किल बनाया है वे हैं सूचना और जानकारी का विस्फोट तथा जीवन की बढ़ी या बढ़ती हुई गति। अचानक हमें लगने लगा है जैसे जीवन को जानने पहचानने की जो हमारी शक्तियाँ थीं, ...

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इस अ-कवि समय में, कविता संग्रह (2010)

लेखक : संतोष चौबे

‘रेस्त्रां में दोपहर’ तथा ‘हल्के रंग की कमीज’ जैसे कहानी-संग्रह तथा ‘राग केदार’ और ‘क्या पता कॉमरेड मोहन’ जैसे उपन्यास लिखकर चर्चा में आए कथाकार संतोष चौबे मूलतः कवि हैं...

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कोना धरती का, कविता संग्रह (2010)

लेखक : संतोष चौबे

हवा, पानी, आकाश, धरती, प्रेम, विज्ञान, विकास.... इन सारे शब्दों का अर्थ होना चाहिये जिंदगी। संतोष की कविताओं के अर्थ जिंदगी में खुलते हैं। ये कविताएँ संवेदन भरा...

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लेखक और प्रतिबद्धता (फ्रेडरिक जेमसन तथा ओडिसस इलाइटिस के निबंधों का अनुवाद) (2008)

लेखक : संतोष चौबे

‘प्रगतिशील’ कला क्या होती है, यह एक ऐतिहासिक प्रश्न है। और हठवादिता के साथ संपूर्ण कालावधि के लिए उसे नहीं...

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माॅस्को डायरी (वाॅल्टर बेंजामिन के निबंधों का अनुवाद) (2008)

लेखक : संतोष चौबे

जब तक मैं माॅस्को की नदियों, उसकी ऊँचाइयों और उसके लैण्डस्केप को नहीं खोज पाया था तब तक हर रास्ता मुझे एक नदी की तरह लगता था। घरों पर पड़े हुए नम्बर त्रिकोणमिति के चिह्में की तरह नज़र आते थे ...

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क्या पता काॅमरेड मोहन, उपन्यास (2007)

लेखक : संतोष चौबे

उपन्यास की सहज प्रवाहमयी भाषा उपन्यास को एक बार में पढ़ने को बाध्य करती है। इस तरह के वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न, वैमर्शिक उपन्यासों का हिन्दी में आना एक सुखद भविष्य की तरफ संकेत करता है। इस तरह के उपन्यासों का व्यापक स्तर पर स्वागत किया जाना चाहिए।

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प्रतिनिधि कहानियाँ, कहानी संग्रह (2005)

लेखक : संतोष चौबे

संतोष की इन कहानियों में एक किस्म का क्रीड़ा भाव लगभग केंद्रीय रूप से मौजूद है। वाग्वैदग्ध्य और विडम्बनाओं को पकड़ने की इनमें अद्भुत क्षमता है।

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रेस्त्रां में दोपहर, कहानी संग्रह (2000)

लेखक : संतोष चौबे

संतोष की कहानियों में एक किस्म का क्रीडा भाव लगभग केन्दीय रूप से मौजूद है. वाग्वैदग्ध्य और विडम्बनाओं को पकड़ने की इनमें अद्भुत क्षमता है. इनके आख्यान में एक खास तरह का अंदाज है |

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कला की संगत (1995)

लेखक : संतोष चौबे

मेरे लिये साहित्य और कला की संगत एक निष्क्रिय कर्म नहीं। वह सक्रिय रूप में अपने आसपास को, अपने मित्र रचनाकारों को और अपने समय को समझना है और यह प्रक्रिया मेरे मन में निरंतर जारी रहती है। इसमें व्यक्ति-रचनाकार की भी महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि रचना तो वही कर रहा है।

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हल्के रंग की कमीज़, कहानी संग्रह (1992)

लेखक : संतोष चौबे

चूँकि प्रस्तुत कहानी - संग्रह में एक कवि की कहानियाँ संग्रहीत है इसलिए प्रसंगवश कहना होगा कि कुछ अपवादों को छोड़कर हिन्दी की वे कहानियाँ ज़्यादा अच्छी है जो कवियों ने लिखी है। यह अलग बात है कि उन्हें समझने और समझाने का काम आलोचना ने नहीं किया, न ही पेशेवर कहानीकारों ने उन्हें सराहा।

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राग केदार, उपन्यास (1990)

लेखक : संतोष चौबे

राग केदार अपनी संरचना में इसलिए दिलचस्प भी कि इसमें उपन्यास का अत्यन्त प्रचलित और परिचित ढाँचा नहीं है और ना ही कोई सायास अर्जित की गई प्रयोगधर्मिता। यह एक व्यक्ति के चरित्र और उसके जीवन के लूज़ पेपर्स की तरह है। इसमें बयान है, डायरियाँ है और संस्मरण है।

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अपने समय में (2014)

लेखक : संतोष चौबे

बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विश्व में तीन बड़ी घटनाएँ हुई हैं। एक, सोवियत साम्राज्य का पतन जिसे वामपंथी विचारधारा और समाजवादी स्वप्न तथा दृष्टि के अंत के रूप में देखा जा रहा है, दो, इस्लामी आतंकवाद का उदय जिसे सभ्यताओं के टकराव के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है |

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वनमाली समग्र (2013)

लेखक : संतोष चौबे

मैं कहानी में सब बातें छोड़ने को तैयार हूँ पर उसमें इंटेंसिटी और ड्रामैटिक एलीमेंट का होना मैं बहुत लाजिम समझता हूँ। शायद ये दो चीजें ही कहानी की टेक्नीक की जान हैं। मैं यह नहीं कहता कि

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वनमाली समग्र सृजन(2013)

लेखक : संतोष चौबे

मैं कहानी में सब बातें छोड़ने को तैयार हूँ पर उसमें इंटेंसिटी और ड्रामैटिक एलीमेंट का होना मैं बहुत लाजिम समझता हूँ। शायद ये दो चीजें ही कहानी की टेक्नीक की जान हैं। मैं यह नहीं कहता कि

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वनमाली समग्र,स्मृति दो खंडों में (2011)

लेखक : संतोष चौबे

मैं कहानी में सब बातें छोड़ने को तैयार हूँ पर उसमें इंटेंसिटी और ड्रामैटिक एलीमेंट का होना मैं बहुत लाजिम समझता हूँ। शायद ये दो चीजें ही कहानी की टेक्नीक की जान हैं। मैं यह नहीं कहता कि ..

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