‘I would like to congratulate the Chancellor, Rabindranath Tagore University, for promoting Indian Culture in Global Arena in the name of Gurudev Rabindranath Tagore.’

- Pranab Mukharjee, former President, GoI in Vishwa Rang 2019

‘I appreciate the AISECT’s efforts in taking IT to people.’

- Dr. A.P.J. Abdul Kalam President, GoI in Indian Innovation Awards, 2006

यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि विश्व हिन्दी सचिवालय की भारत एवं मॉरीशस इकाइयों एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा मॉरीशस में विश्व रंग महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। भाषा, साहित्य, कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देते हुए इस वार्षिक कार्यक्रम का आयोजन सराहनीय है।

- नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री, भारत अभिमत

‘I am thankful to Shri Santosh Choubey and to Vishwa Rang Committee for bringing Vishwa Rang festival to Mauritius.’

- Pravin Jagnauth Prime Minister of Mauritius at Vishwa Rang 2024 festival

‘Vishwa Rang is the largest cultural festival of Asia, promoted by Rabindranath Tagore University’.

- Lalji Tandon the Hon. Governor of M.P.

मुझे हर्ष है। हमारी कला-संस्कृति हज़ारों वर्ष से चली आ रही है। इसकी जो आभा है वो शताब्दी दर शताब्दी कायम है। विश्वरंग में भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जो कार्य हो रहा है, मैं उसका स्वागत करता हूँ। विश्वरंग का विस्तृत कार्यक्रम देखकर मन को हर्ष हुआ कि इसमें बहुत सारे नृत्य भी हैं, संगीत भी है। आपने गुरुदेव के नाम पर विश्वविद्यालय बनाया है। वो एक महान साहित्यकार थे, महान विचारक थे। उनकी ख्याति केवल भारत तक सीमित नहीं है। वे विश्वविख्यात है। मुझे उम्मीद है कि विश्वरंग अपने उद्देश्य में सफल रहेगा। टैगोर की स्मृति के साथ ही अपने समय में कला, साहित्य और संस्कृति के प्रति आप गहरी संलग्नता से काम करते रहेंगे, विश्वरंग इस बात का विश्वास देता है।

- कर्णसिंह, राजनेता - चिंतक

आई एम पोइट फ्रॉम साउथ अफ्रीका । आई एम ऑल्सो- फिल्ममेकर, एक्ट्रेस एण्ड प्रोड्यूसर । फर्स्ट टाइम कमिंग इन इण्डिया। आई एम हेप्पी टू कम हियर । 'विश्वरंग' इज़ वैरी स्पेशल । साउथ अफ्रीका है ए लार्ज इण्डियन कम्युनिटी सो द कल्चर ऑफ इण्डियन एंड लिटरेचयर वेरी क्लोज़ टूमी ।

- लेबो मशीले, लेखिका, साउथ अफ्रीका

मैं मास्को विश्वविद्यालय में हिन्दी, पंजाबी और कुछ धार्मिक विषय पढ़ाती हूँ। हमारे विद्यार्थी वहाँ शौक से हिन्दी सीख रहे हैं। भारतीय फिल्मों और कलाओं का वहाँ विशेष आकर्षण है। यह प्रेम काफी पुराना और गहरा है। 'विश्वरंग' ने भारत और रशिया के बीच एक नए सांस्कृतिक रिश्ते की शुरुआत की है। मुझे निजी तौर पर यहां आकर बहुत लाभ हुआ।

- लिउडमिला खोखलोवा, प्रोफेसर मास्को विवि, रशिया

'विश्व रंग' के बारे में दो बातें कहूँगी। 'विश्व रंग' पहला ऐसा आयोजन है मेरे अनुभव में जहाँ मैं विश्व को एक होते हुए देख रही हूँ। सारे आगंतुकों में उत्साह, स्नेह और खुशी का भाव है। भारत से बाहर रहकर एक कथाकार के रूप में हिन्दी के संसार से जुडना एक अलग ही अनुभव है। वनमाली कथा सम्मान समारोह में शामिल होकर मुझे गर्व की अनुभूति हुई।

- सुषम बेदी, कथाकार, अमेरिका

'विश्वरंग' के अप्रतिम महोत्सव ने भारतीय संस्कृति से जुड़े विश्व भर के रचनाकारों को समीप लाने और वैश्विक वैचारिकता के लिए काम करने हेतु उन्हें अधिक प्रतिबद्ध बनाया है। राजस्थानी लोक नृत्यों को अपने परिवार के साथ खुले आकाश के नीचे सीढियों पर बैठ कर देखने का आनंद ही कुछ और था। लोक कलाएँ निश्चय ही हमारे आदिम अहसासों को छूती है।

- धर्मपाल महेन्द्र जैन, साहित्यकार, टोरंटो

अठारह खंडों में कथा ग्रंथ, हिंदी कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद, उत्तेजक विचार-विमर्श और लोक कला के रंग प्रसंग... एक उत्सव में कितना कुछ ! संतोष चौबे और उनकी पूरी टीम की ऊर्जा और तेजस्विता के लिए विस्मित सद्भाव से भरी हुई हूँ मैं।

- ममता कालिया, कथाकार

यहाँ पर एक विशेष चीज़ हुई है जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ, वह यह है कि जो संवाद और विमर्श यहाँ हुए, वो बहुत ही ऊँचे दर्जे के और गम्भीर हैं। प्राय: इस तरह के उत्सवों में खानापूर्ति ज़्यादा होती है, तमाशा ज़्यादा होता है।

- सुधीर चन्द्रा, इतिहासकार

पहली बार साहित्य संस्कृति की इतनी बड़ी महफिल में भाग लेकर अच्छा लगा। मेरी मातृभाषा तिब्बती है और मैं अंग्रेज़ी में कविता लिखता हूँ। हिन्दी की महफिल में मेरे किये अनुवादों को शामिल किया जाना, महत्वपूर्ण रचनात्मक अवसर रहा। मुशायरा बेमिसाल था।

- तेंजिम तसन्डू, अनुवादक, तिब्बत

व्यापक स्तर पर इस ढंग से एक वृहद् उत्सव मनाना, जहाँ लेखक, साहित्यकार, रंगकर्मी, चित्रकार..... सारे लोग मौजूद हों, अपने आप में विलक्षण है यह सब ! इसकी जो भव्यता है दिल को छूने वाली है। माइण्ड यहाँ ब्लोइंग होता है और ये सब मुझे अनुभव हो रहा है।

- इन्द्रनाथ चौधरी, साहित्यकार

'विश्वरंग' में युवाओं को हम सम्बोधित कर रहे हैं और एक संदेश दे रहे हैं कि वो देश की वर्तमान राजनीति को समझें, देश की वर्तमान सामाजिक चेतना को परखें। एक ज़रूरी हस्तक्षेप लगा युवाओं का यहाँ होना। हम जैसे वरिष्ठ कवियों को युवाओं के साथ इन्टरैक्शन का जो अवसर मिला वह दुर्लभ और आत्मीय क्षण रहा। सब तरह के उतार-चढ़ाव मैं हिन्दी कविता के देखे हैं, लेकिन मैं हमेशा आधुनिक कविता के निकट रहा और तात्कालिक सत्य और यथार्थ को चित्रित करता रहा अपनी कविता में। विश्वरंग में आए युवा रचनाकारों से ऊर्जा मिलती रही मुझे।

- ऋतुराज, कवि-चिंतक

विश्वरंग मेरे लिए न केवल टैगोर बल्कि हिन्दुस्तान की सुंदर संस्कृति को गहराई से जानने का एक ज़रिया बना है। मुझे आश्चर्य होता है कि टैगोर का लिटरेचर सारी दुनिया की मनुष्यता की आवाज़ बन सका है।

- सेमिदा डेविड, लेखक, रोमानिया

दिल्ली पहुंचकर 'विश्वरंग' को बहुत बहुत याद किया। गहरी संतुष्टि हुई । अद्भुत महोत्सव संपन्न हुआ। ऊँचाइयों को छूता हुआ। मैं विश्व हिंदी सम्मेलन की कार्यकारिणी और उसके सभी कार्यक्रमों के निर्धारण में सक्रिय रही हूँ, 11 वें सम्मेलन तक, लेकिन रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय समारोह, कहने में गुरेज नहीं कि अपने तमाम आयामों और परिणितियों में और तुलना विशेष रहा। विश्वरंग सब की मेहनत का नतीजा है और संतोष के विजन और अथक परिश्रम का समवेत प्रतिफल। मैं

- चित्रा मुद्गल, कथाकार

सरकारी समारोह तो बहुत सारे होते देखता रहा हूँ, लेकिन एक प्राइवेट यूनिर्वसिर्टी ने साहित्य और कला के प्रति इस तरह बहुत बड़े पैमाने पर जो दायित्व निर्वाह विश्वरंग में प्रकट किया है, वह बहुत ही सराहनीय है। दुनियां के अनेक मुल्कों से लेखक, शिक्षाविद्, मीडियाकर्मी ही नहीं बल्कि बड़ी तादाद में विद्यार्थियों का इसमें पूरी रुचि के साथ शरीक होना इस उत्सव की उपलब्धि है। विश्वरंग में प्रवेश निःशुल्क यह और खास बात।

- के. श्रीनिवास राव, सचिव साहित्य अकादेमी, दिल्ली

मेरा सौभाग्य है कि 'विश्वरंग' में मुझे अवार्ड मिला है प्रिंट मेकिंग के लिए। उसके लिए तो खुश हूँ ही। दूसरी बड़ी उपलब्धि यहाँ देश-दुनिया के गुणी और नामचीन कलाकारों से मिलना और संवाद करना है। कई कलाकारों का बहुत अच्छा वर्क देखने को मिला। सेमिनार्स से बहुत कुछ सीखने को मिला।

- अनुपमा डे, चित्रकार

अनुपमा डे, चित्रकार टैगोर यूनिर्वसिटी को थैंक्स कहना चाहूँगी कि उन्होंने हम लोगों को 'विश्वरंग' में इतनी बड़ी अपॉर्चुनिटी दी। अपनी भावनाओं को हम अपनी लेखनी में अभिव्यक्त करते हैं लेकिन यह अभिव्यक्ति जब 'विश्वरंग' जैसे विशाल मंच का हिस्सा बनती है तो इसका दायरा बढ़ जाता है।

- आलिया शेख, लेखिका

मैं इजराइल से इस सांस्कृतिक महोत्सव में आया हूँ। भारत से मेरा सम्पर्क बहुत पुराना है। ये बहुत अच्छी बात है कि हिन्दी को बड़ा महत्व दिया जा रहा है। भाषा के त्यौहार की खुशी है।

- गेनाद्य श्लोम्पर, भाषाविद्, इजराइल

भोपाल शहर के लिए एक अनूठी सौगात है 'विश्वरंग'। दुनिया के इतने सारे लोगों को इकट्ठा करना, कला और साहित्य पर लगातार सात दिनों का संवाद करना अपने आप में उपलब्धि है। हमारा जो मुल्क है वह इतना बड़ा है कि इस तरह के आयोजन अगरसौ से भी ज़्यादा हों तब भी कम हैं। औरइस तरह के आयोजन यदि व्यक्तिगत तौर पर यूनिर्वसिटी करना शुरू कर रही है तो अन्य संस्थाओं को भी इससे सबक लेकर इस तरह के आयोजन करना चाहिए, जिसमें हमारे देश के कलाकारों और साहित्यकारों का न सिर्फ भला होगा बल्कि उनका एक संवाद भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो सकेगा।

- अखिलेश, चित्रकार

मुझे लगता है कि युवाओं से लेकर साहित्य की मशाल को एक बार फिर ले जाने का, उसकी ज्योति को फिर से फैलाने का काम 'विश्वरंग' कर रहा है। यह एक बड़ा सांस्कृतिक अभियान है।

- पंखुरी सिन्हा, कवियित्री

बहुत खूबसूरत कार्यक्रम है 'विश्वरंग'। विविध कलाओं को इसमें शामिल किया गया है। टैगोर की स्मृति को यह भावभीनी श्रद्धांजलि। मैं रवीन्द्र बाबू तू के के मह महान सृजन को प्रणति देता हूँ, वीरता और धीरता से भरा व्यक्तित्व था उनका, उसी के अनुरूप यह कार्यक्रम भी है।

- प्रेमशंकर शुक्ल, कवि-मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, भारत भवन

चार नवम्बर से दस नवम्बर 2019 अब वे तिथियाँ हैं जो हिन्दी भाषा की विश्व-प्रतिष्ठा के रूप में सदैव याद की जाएँगी। 'विश्वरंग' ने मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर हिन्दी भाषा, साहित्य और सर्जकों का जो सांस्कृतिक, वैचारिक और सर्जनात्मक अनुष्ठान किया, वह संभवतया विश्व में अपने ढंग का प्रथम अनुष्ठान कहा जाएगा और इससे जो तथाकथित लिटरेरी फेस्ट किए जाते हैं, उनके प्रायोजित आयोजनों का अतिक्रमण कर साहित्य और कलाओं की लोक सार्थकता और लोकप्रियता सिद्ध की है।

'विश्वरंग' भव्यता की झांकी भरन होकर, संवाद, सम्मान और भाषाओं के मध्य पारस्परिक समागम का ऐसा उदाहरण है जिससे उन समस्त संस्थाओं को प्रेरित होना चाहिए, जो हिन्दी को केवल समारोही राजभाषा दिवस में सीमित कर, यह भूल जाते हैं कि हिन्दी भाषा ही नहीं, भारतीय लोक मनीषा की सर्वाधिक सम्पन्न, समृद्ध और सहज भाषा है। इसलिए मैं मानता हूँ कि 'विश्वरंग' हमारी भाषाओं की गरिमामय प्रतिष्ठा का आयोजन रहा है। यदि भाषा के प्रति ऐसे निजी प्रयास तन, मन धन से हो से रहे तो, हमारी भाषाएं सारे संसार के समक्ष सर ऊँचा कर यह गर्व के साथ कह सकेंगी कि भारत एक ऐसा भाषावान देश है जहाँ हमारी भाषाएँ जन-समरसता का उत्कृष्ट मानदण्ड बनकर खड़ी हैं। इस कल्पना, संकल्प और क्रियान्वयन के लिए रबीन्द्रनाथ टेगौर विश्वविद्यालय, सी. वी. रमन विश्वविद्यालय आईसेक्ट, वनमाली सृजन पीठ, रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व कला केन्द्र और आपके समस्त समानशील सहयोगी, सहकर्मी और सहधर्मी न केवल बधाई के पात्र हैं बल्कि प्रफुल्ल मन से पूर्ण प्रशस्ति के हकदार हैं। उम्मीद है कि भविष्य में ऐसे आयोजन से आप भाषा, संस्कृति साहित्य एवं कलाओं का एक नया और अधिक व्यापक विश्वरंग रचेंगे और पूर्वज रचनाकारों के स्मरण के साथ समकालीनों की भूमिका उल्लेखनीय बना सकेंगे।

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- रमेश दवे, साहित्यकार-शिक्षाविद्

'विश्वरंग' उत्सव का आयोजन कर आपने राष्ट्रदेवता का अभिषेक किया है। यह उत्सव अपने आप में अनूठा और आवश्यक था। यह संस्कृति के सारे ललित आयामों का सम्मान करने वाला था। उनका पुनरावलोकन करने वाला था। उनका व्यावहारिक धरातल पर संस्थापन करने वाला था। आपके सप्रयासों से संस्कृति अपने समस्त कलारूपों में पुनर्नवा हुई है। साहित्य अभिनन्दित हुआ है। कला गौरवान्वित हुई है। यह उत्सव अपने समय के आकाश में अनेक मोहक और अमिट रंग छोड़ गया है। इन्हीं से भविष्य की धरती पर सांस्कृतिक विकास के घन घिरेंगे। बरसेंगे। धरती सरसंगी। आपको साधुवाद।

उत्सव में संस्कृति के सर्वांग साकार हुए है। कोई कोना नहीं छूटा है। (निबन्ध, ललित निबन्ध को छोड़कर) आपका व्यवस्थापन और संस्थापन सब कहीं मौन मुखर हो रहा था। साहित्य कला की प्रत्येक प्रस्तुति में सम्मान और गर्व प्राप्त होता अनुभव किया जा सकता था। प्रत्येक विधा का अपेक्षित मान, प्रत्येक रचनाकार का समुचित सम्मान, प्रत्येक कला का उचित आदर, प्रत्येक कलाकार का समुचित सत्कार विश्वरंग उत्सव में हुआ है। यह आपका साहित्य, कला, भाषा और रचनाकार कलाकार के प्रति तरलतापूर्ण कृतज्ञ भाव का प्रमाण है। आपका बौद्धिक नभ तो विस्तृत और समृद्ध है ही, ह्दय सिन्धु भी श्यामल और गहरा है। आपको धन्यवाद।

सम्पूर्ण विश्वरंग उत्सव में सप्ताह भर के कार्यक्रमों और साहित्य रूपों, कला रूपों के मोतियों की माला में प्रिय विनय उपाध्याय की भूमिका औरस्थान माला में रेशमी तागे की रहा है। आप तो उस माला के सुमेरू है। सारे अधिकारी-कर्मचारी पूरी निष्ठा से अपने अपने दायित्व का निर्वाह कर सके, तभी इतना सुन्दर, आवश्यक, संस्कृक्तिनिष्ठ, विशाल उत्सव पर्व व्यवस्थित तथा सुचारू सम्पन्न हो सका। विद्यार्थियों के अनुशासित आचरण, विनम्र व्यवहार और कार्य दक्षता की तो मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करता हूँ। आपने इस उत्सव के माध्यम से उन्हें कार्यक्रम आयोजन का प्रशिक्षण और संस्कृति के संस्कार दिये हैं। सम्पूर्ण आयोजन उत्सव में आप श्रीकृष्ण की भूमिका में और विनय उपाध्याय पार्थ की भूमिका रहे हैं। आपने ऐसा साहित्य कला उत्सव करदिखाया, जिसे बड़े-बड़े स्वनामधन्य संस्थान और सरकारें भी नहीं कर पाती हैं। आपका अभिनन्दन।

वर्तमान तुमुल कोलाहल कलह में आपने जैसे द्वापरी भूमि पर बाँसुरी बजाई है।

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- श्रीराम परिहार, ललित निबंधकार

'विश्वरंग' की परिकल्पना के मूल में जो बात रही वो यह कि कला के क्षेत्र में जो कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं तो ऐसा कोई एक विकल्प हम बना सकें, एक स्पेस बना सकें जहाँ जो डिसीजन लिए जाएँगे वो आर्टिस्ट द्वारा लिए जाएँगे। इस बैकग्राउण्ड के साथ हमने काम किया। इस सबमें संतोष चौबे जी की अग्रणी भूमिका थी। उन्होंने यह सोचा' लेट इट हैप्पन' हम देखेंगे इसका रिजल्ट कैसा होता है! आप अपने प्लान बनाइये एंड यू डूइट।

हम लोगों ने करना शुरू किया स्टूडियो से बाहर आकर मैंने इस आयोजन से अपने को जोड़ा। अपना समय दे रहा हूँ, अपना श्रम दे रहा हूँ तो मेरी भी तो कोई राजनीति होगी। इस 'राजनीति' शब्द को आप उस तरह से न लें। मेरी समझ में भारतीय चित्रकला में 'चित्रकला' की जो परिभाषा है उसमें गड़बड़ है, जो बार-बार मैं स्ट्रेस कर रहा हूँ, कि हमारी समझ यह है कि हमने चित्रण को चित्र माना। इलेस्ट्रेशन और पेंटिंग में हम फर्क नहीं कर पाये। हमारी दिक्कत यह है कि हम हर चीज़ में 'कहानी' ढूँढ़ते हैं। कहानी ढूँढ़ते नहीं हैं, वहाँ ऑलरेडी एक कहानी रहती है। इस चीज़ से बाहर निकलने के लिए एक लम्बी लड़ाई की ज़रूरत है और उस लम्बी लड़ाई को हम यहाँ से शुरू कर रहे हैं और ये हम लोगों की बहुत बड़ी उपलब्धि है। मेरे ख्याल से ये बहुत दूर तक जायेगी और आने वाले दिनों में हम लोग इस मिशन पर काम करेंगे कि छोटे शहर के लोगों का पार्टिसिपेशन हो। महिलाओं का पार्टिसिपेशन हो, जो अपने घर से नहीं निकल पाती हैं। पार्टिसिपेशन कोई मेला नहीं है। पार्टिसिपेशन हो तो एक मकसद के साथ हो कि हम दरअसल कहना क्या चाहते हैं, किस तरह के विचारों से हम जुड़े हुए हैं, हम चित्रकला को किस नज़रिये से देखते हैं। मेरा ख्याल है कि अभी बहुत दूर का सफर तय करना है और मैं बड़ा आश्वस्त होता हूँ कि मेरे साथ जो साथी आकर जुड़े, यही 'विश्वरंग' विचारधारा के संवाहक होंगे।

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- अशोक भौमिक संयोजक-कला प्रदर्शनी विश्वरंग

'अखिल भारतीय चित्रकला प्रदर्शनी' में एक साथ कला की विविधा को देखना निश्चय ही अद्वितीय अनुभव है। 'विश्वरंग' का यह आयाम, यह सोच उसकी समग्र दृष्टि का ही परिचय देता है। हमारे वक्ती दौर के युवा अपने चित्रों और शिल्पों में जिस नई सोच और कलात्मक ऊर्जा के साथ पेश आ रहे हैं उसे दर्शकों के सामने लाया जाना ज़रूरी है। 'विश्वरंग' का एक हिस्सा इस तरह भारत भवन भी बना, यह शुभ है।

- देवीलाल पाटीदार, चित्रकार-शिल्पी

व्यापक और बहुरंगी समारोह इतना व्यवस्थित होगा, इसकी कल्पना करना ही कठिन है। आयोजक टीम के हर कार्यकर्ता को सलाम।

- मानांबी बन्दोपाध्याय, सुजनधर्मी

'थर्ड जेण्डर मीट' में आमंत्रित होकर गर्व हुआ। रिसाइटेशन के लिए इनवाइट किया दिस इज़ ए ग्रेट अर्पोच्युनिटी टु अस। क्योंकि ये जो ट्रांसजेण्डर सोसायटी है, ये इण्डिया में बहुत दिनों तक हमारी सोसायटी में निग्लेक्ट रहा, लेकिन जो ट्रांसजेण्डर इंसान हैं, वो भी टेलेण्टेड हैं, वो भी लिटरेचर के शौकीन हैं। लिखते हैं, गाते हैं, चित्रित करते हैं। थैंक्स टु ऑर्गेनाइजेशन।

- देवज्योति भट्टाचार्य, साहित्यकार

मैं पंजाब यूनिर्वसिटी की पहली ट्रांसजेण्डर स्टूडेण्ट हूँ और अभी मैं पीएच.डी. कर रही हूँ। मैं मंगलमुखी ट्रांसजेण्डर डेवलप सोसायटी की जनरल सेक्रेटरी हूँ। हर साल वहाँ 'गर्व उत्सव मनाया जाता है। रबीन्द्रनाथ टैगोर यूनिर्वसिटी, भोपाल ने 'विश्वरंग' का बहुत ही विलक्षण आयोजन किया। मैं पूरी दुनिया में और भारत में भी हर जगह जाती हूँ। कई उत्सव मैंने देखे। वहाँ टॉक शो होते हैं, और भी बहुत कुछ। लेकिन 'विश्वरंग' में अद्भुत किस्म की विविधता और रोचकता है। लोगों ने जिस तरह का यहाँ पर रिस्पॉन्स दिया वो हमारा बड़ा हासिल है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में हों ऐसे आयोजन।

- धनंजय चौहान, लेखक सामाजिक कार्यकर्ता

मैं ट्रांसजेण्डर हूँ। टैगोर को लेकर जो कुछ काम विश्वरंग के दौरान देखने को मिला, उसका मैं समर्थन करता हूँ। ये फेस्टिवल तां होना ही चाहिए। मेरी सोसायटी के लिए तो बहुत ज़रूरी है यह सब। हमारी लड़ाई और भी स्ट्रॉग होगी।

- शम्भूनाथ चौधरी, लेखक

देशभर के आर्टिस्ट एक प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा हुए हैं। यह पहला मौका है जब चित्रकार और शिल्पकार समान मंच पर अपने सृजन और संवाद को लेकर खुले मन से प्रस्तुत हुए है।

- नीरज अहिरवार, शिल्पकार

विश्वरंग मेरे लिए न केवल टैगोर बल्कि हिन्दुस्तान की सुंदर संस्कृति को गहराई से जानने का एक ज़रिया बना है। मुझे आश्चर्य होता है कि टैगोर का लिटरेचर सारी दुनिया की मनुष्यता की आवाज़ बन सका है।

- संमिदा डेविड, लेखक, रोमानिया

मैं इजराइल से इस सांस्कृतिक महोत्सव में आया हूँ। भारत से मेरा सम्पर्क बहुत पुराना है। ये बहुत अच्छी बात है कि हिन्दी को, बड़ा महत्व दिया जा रहा है। भाषा के त्यौहार की खुशी है।

- डॉ. गेनादी श्लोम्पेर, भाषाविद, इजराइल

'विश्वरंग' के भव्य उ‌द्घाटन का मैं साक्षी रही। इस महोत्सव के मुख्य सूत्रधार संतोष चौबे को अनूठी परिकल्पना के लिए बधाई। भोपाल तहजीब का शहर है। यहाँ की सरज़मीं पर यह उत्सव बहुत खिल उठा ! पूरी आयोजकीय टीम का तालमेल देखते ही बना !

- जय वर्मा, लेखक, नॉटिंघम, यू.के.

मेरा चीनी नाम 'चंग सी है और मेरा हिन्दी नाम 'मयूरी है। मैं चीन से आई हूँ हिन्दी सीखने के लिए। 'विश्वरंग' में आने का अवसर मिला, शुक्रिया। लेखक कलाकारों से उनकी प्रतियाँ उपहार में मिली, जिन्हें मैं बहुत प्रसन्नता के साथ अपने देश ले जाना चाहूँगी। हिन्दी मेरे लिए केवल एक भाषा नहीं बल्कि चीन और भारत के सम्बन्ध में एक बहुत कारगर संधि है, जिसे हम लिखकर, पढ़कर और अधिक मजबूत करेंगे। 'हिन्दी चीनी भाई-भाई'।

- चंगी सी (मयूरी), शोधार्थी, चीन

इस अनूठे सांस्कृक्तिक उत्सव में आकर हार्दिक खुशी है। यह मेरा दूसरा भारत प्रवास है। इस बार अपनी कुछ कविताएँ लेकर आयी हूँ। कितना सुन्दर और सुखद है यहाँ का नज़ारा।

- इगोर सीड, कवि, रशिया

मैं बहुत खुश हूँ कि भारत का 'विश्वरंग' मेरी आँखों और मन में गहरे उतर रहा है। मैं हर बार यहाँ आना चाहूँगी। मैं कज़ाकिस्तान की जनता की ओरसे विश्वरंग में शामिल हुए सभी भारतीय लेखक-कलाकारों को शुभकामनाएँ देती हूँ।

- डेरिगा कोरेयेव, शोधार्थी, कज़ास्तिान